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सोलर ऊर्जा अपनाने पर अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न


यह एक व्यवस्था है जिसमें आपके घर या दफ्तर की छत पर सोलर पैनल लगाए जाते हैं, जो धूप से बिजली बनाते हैं।

सोलर पैनल धूप को बिजली (DC) में बदलते हैं। इन्वर्टर इस DC को AC (वही बिजली जो घर में इस्तेमाल होती है) में बदल देता है। यह बिजली आपके उपकरण चलाती है। अतिरिक्त बिजली या तो ग्रिड में भेजी जाती है या बैटरी में स्टोर होती है।

  • बिजली का बिल 80–90% तक कम हो सकता है।
  • रखरखाव बहुत कम है और सिस्टम लंबे समय तक चलता है।
  • घर या प्रॉपर्टी की कीमत बढ़ती है।
  • सरकार की सब्सिडी और नेट-मीटरिंग से निवेश और आसान हो जाता है।

 हाँ, यह सबसे सुरक्षित और स्वच्छ ऊर्जा है। इसमें धुआँ, शोर या प्रदूषण नहीं होता। सभी उपकरण सुरक्षा मानकों पर जाँचे जाते हैं और सर्टिफाइड प्रोफेशनल्स द्वारा लगाने पर किसी प्रकार का खतरा नहीं होता।

  • धूप वाली, बिना छाया की छत (लगभग 100 वर्ग फुट प्रति 1 kW)।
  • छत तक पहुँचने की सुविधा।
  • मान्य बिजली कनेक्शन।
  • ऑन-ग्रिड सिस्टम: ग्रिड से जुड़ा होता है, बैटरी नहीं होती, अतिरिक्त बिजली ग्रिड में भेजी जाती है।
  • ऑफ-ग्रिड सिस्टम: ग्रिड से जुड़ा नहीं होता, बैटरी में बिजली स्टोर होती है।
  • हाइब्रिड सिस्टम: ग्रिड और बैटरी दोनों से जुड़ा होता है, बिजली कटने पर बैकअप देता है।

हाँ, पैनल कम क्षमता पर काम करते हैं लेकिन बिजली बनाना जारी रखते हैं।

  • ऑफ-ग्रिड/हाइब्रिड सिस्टम: हाँ, बैटरी से बिजली मिलती है।
  • ऑन-ग्रिड सिस्टम: नहीं, सुरक्षा कारणों से ये बंद हो जाते हैं।

1 kW सोलर सिस्टम औसतन 4–5 यूनिट प्रतिदिन (1400–1800 यूनिट प्रतिवर्ष) बिजली बनाता है।

यह आपकी बिजली खपत और छत की जगह पर निर्भर करता है। हमारी टीम छत का सर्वे कर सही साइज बताएगी।

नेट-मीटरिंग से आप अतिरिक्त बिजली ग्रिड में भेज सकते हैं और उसका क्रेडिट बिल में मिल जाता है। महीने के अंत में आप केवल “नेट” खपत के लिए भुगतान करते हैं।

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एक रूफटॉप सोलर सिस्टम की औसत आयु 25 से 30 वर्ष होती है। इस दौरान बहुत कम रख-रखाव की आवश्यकता पड़ती है। (हाँ, इन्वर्टर को सिस्टम की आयु के दौरान एक बार बदलने की आवश्यकता हो सकती है।)

नहीं — सोलर रूफटॉप सिस्टम का रख-रखाव खर्च बहुत ही कम होता है।

✅ रख-रखाव लागत कम होने के कारण:

  • सोलर पैनलों में कोई मूविंग पार्ट्स नहीं होते, इसलिए घिसावट कम होती है।
  • कंपोनेंट्स इस तरह बनाए जाते हैं कि वे गर्मी, बारिश और धूल झेल सकें।
  • केवल साधारण सफाई और बेसिक चेक ही पर्याप्त होते हैं।

सूर्योदय की ओर से 5 साल तक निःशुल्क रख-रखाव सेवा उपलब्ध है।

हाँ, सोलर प्लांट की नियमित सफाई बहुत ज़रूरी है। इससे सिस्टम की कार्यक्षमता बनी रहती है। हम सलाह देते हैं कि पैनलों की सफाई महीने में दो बार की जाए।

जी हाँ, सोलर सिस्टम लगभग हर तरह की छत पर लगाया जा सकता है, चाहे वह किसी भी साइज या मटेरियल की हो। अगर छत नाज़ुक है (जैसे एस्बेस्टस शीट), तो सूर्योदय टीम छत की जाँच करके उसके अनुसार विशेष माउंटिंग स्ट्रक्चर तैयार करती है।

भारत में रूफटॉप सोलर प्लांट की लागत इसकी क्षमता (किलोवाट), सिस्टम के प्रकार (ग्रिड-टाइड, हाइब्रिड या ऑफ-ग्रिड), ब्रांड, और आपको मिलने वाली सरकारी सब्सिडी पर निर्भर करती है।

ऑन-ग्रिड सिस्टम का ब्रेक-ईवन पीरियड केवल 2 से 4 साल का होता है। इसके बाद अगले 20+ वर्षों तक उत्पन्न बिजली पूरी तरह निःशुल्क होती है।

हाँ ✅, भारत सरकार सौर ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिए आकर्षक सब्सिडी और प्रोत्साहन देती है, विशेषकर आवासीय उपभोक्ताओं को।

सब्सिडी विवरण:

  • आवासीय – 1 kW : ₹30,000/-
  • आवासीय – 2 kW : ₹60,000/-
  • आवासीय – 3 kW से अधिक : ₹78,000/-

उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा अतिरिक्त सब्सिडी:

  • ₹15,000 प्रति kW (अधिकतम ₹30,000)
  • इस प्रकार, कुल अधिकतम सब्सिडी राशि ₹1,08,000 तक हो सकती है।

हाँ, सूर्योदय आसान ईएमआई विकल्प उपलब्ध कराता है। साथ ही, विभिन्न बैंक और एनबीएफसी द्वारा बिना गारंटी (collateral-free) लोन सुविधाएँ भी प्रदान की जाती हैं।

🔹 कैपेक्स मॉडल (Capital Expenditure):

  • उपभोक्ता खुद सिस्टम खरीदता और उसका मालिक होता है।
  • लाभ:
  • शुरुआती निवेश आपका
  • सिस्टम और ऊर्जा बचत पर पूरा नियंत्रण
  • संचालन एवं रखरखाव (O&M) की जिम्मेदारी (इसे आउटसोर्स भी किया जा सकता है)
  • आवासीय उपभोक्ताओं को सब्सिडी और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को टैक्स बेनिफिट मिलता है।
  • सबसे उपयुक्त: गृहस्वामी और व्यवसाय जिन्हें पूँजी निवेश की क्षमता है और जो लंबे समय का लाभ चाहते हैं।

🔹 ओपेक्स मॉडल (Operational Expenditure) / RESCO / PPA मॉडल:

  • इसमें उपभोक्ता केवल उत्पन्न बिजली का भुगतान करता है, सिस्टम का नहीं।
  • लाभ:
  • कोई शुरुआती निवेश नहीं
  • थर्ड-पार्टी इंस्टॉलर (RESCO प्रोवाइडर) सिस्टम का मालिक और देखभाल करने वाला होता है
  • उपभोक्ता एक पावर परचेज एग्रीमेंट (PPA) साइन करता है और ₹4.5–₹6 प्रति यूनिट की दर से बिजली का भुगतान करता है
  • अनुबंध अवधि 10–25 साल तक हो सकती है
  • सबसे उपयुक्त: उद्योग, संस्थान और व्यावसायिक प्रतिष्ठान जिनकी बिजली खपत अधिक है और जो बिना पूँजी निवेश के सौर ऊर्जा अपनाना चाहते हैं।

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